दीपका।छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के बाद भी भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की व्यवस्था पर कोई असर होता नहीं दिख रहा है। दीपिका नगर पालिका एक बार फिर चर्चा में है, और इस बार मामला पहले से भी ज्यादा गंभीर बताया जा रहा है।
स्थानीय रिपोर्ट स्रोतों की पड़ताल के अनुसार, दीपका नगर पालिका में ठेकेदारों को किसी भी निर्माण या विकास कार्य का ऑर्डर देने से पहले ही 7% कमीशन अनिवार्य रूप से “भेंट” स्वरूप देना पड़ता है।
इसके बाद ही संबंधित अधिकारी फाइल को आगे बढ़ाते हैं और ठेका स्वीकृत होता है। कमीशन का बंटवारा कुछ इस प्रकार बताया जा रहा है।
5% –5%- 2% – 1%1 –% –-3% – काम शुरू होने से पहले ही 7% ‘एडवांस’जानकारों की मानें तो ठेकेदारों को काम मिलने से पहले ही कुल 7% रकम अधिकारियों को एडवांस देनी होती है। और यदि काम स्वीकृत हो जाता है, तो कुल कमीशन 17% से लेकर 24 %तक पहुँच जाता है।
सवाल यह उठता है कि यदि कार्य का 24% हिस्सा पहले ही कमीशन में चला जाए, तो काम की गुणवत्ता कैसी होगी?
भ्रष्टाचार पर “जीरो टॉलरेंस”
भाजपा सरकार भले ही प्रदेश में भ्रष्टाचार को लेकर “जीरो टॉलरेंस” की नीति की बात करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे इतर है।
नगर पालिका क्षेत्र में चल रही यह अघोषित लेकिन स्थायी व्यवस्था सिस्टम की जड़ तक फैली भ्रष्टाचार की तस्वीर पेश कर रही है।
इस पूरे प्रकरण से ठेकेदारों में असंतोष है, वहीं आम जनता में भी यह सवाल उठ रहा है कि उनके टैक्स के पैसे आखिर किस गुणवत्ता और किस नियत से खर्च किए जा रहे हैं।सरकार चाहे कोई भी हो, लेकिन दीपिका नगर पालिका जैसे निकायों में भ्रष्टाचार का तंत्र इतना मजबूत हो गया है कि सत्ता परिवर्तन से भी उस पर असर नहीं पड़ता। ऐसे में जरूरी है कि शासन-प्रशासन इस मामले में संज्ञान लेकर सीधी जांच और कड़ी कार्रवाई करे, ताकि लोगों का भरोसा लोकतंत्र और सुशासन में बना रह सके।