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संपादकीय

दीपका नगर पालिका का चुनाव इस बार कई मायनों में रोचक और अप्रत्याशित रहा। प्रचार के दौरान प्रत्याशियों ने मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, फिर भी मतदान प्रतिशत उम्मीद से कम रहना चिंता का विषय है। लोकतंत्र की सशक्त भागीदारी के लिए अधिक से अधिक मतदान आवश्यक होता है, लेकिन मतदाताओं की उदासीनता कहीं न कहीं चुनावी प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न लगाती है।

इस बार का चुनावी परिदृश्य और भी दिलचस्प इसलिए हो जाता है क्योंकि मतदाता मतदान से पहले तो चुप्पी साधे ही थे, मतदान के बाद भी उन्होंने अपनी राय जाहिर करने से परहेज किया। यह मौन चुनावी नतीजों को और भी अप्रत्याशित बना सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह स्थिति किसी बड़े उलटफेर का संकेत हो सकती है।

इतिहास पर नजर डालें तो दीपका नगर पालिका पर प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के अंतर्गत भाजपा का वर्चस्व रहा है, जबकि अप्रत्यक्ष प्रणाली में कांग्रेस ने अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी। इस बार का परिणाम किस ओर जाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

लोकतंत्र की सफलता जनता की भागीदारी में निहित होती है। उम्मीद है कि अगले चुनावों में मतदाता अधिक सक्रिय भूमिका निभाएंगे और अपने मताधिकार का भरपूर उपयोग करेंगे। अब सभी की निगाहें नतीजों पर टिकी हैं, जो यह तय करेंगे कि दीपका की सियासत किस करवट बैठेगी।

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