कोरबा :  SECL की कोयला खदानों से विस्थापित हुए ग्रामीण आज भी नौकरी एवं पुनर्वास के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन्ही में से कुसमुंडा कोयला खदान के प्रभावित ग्रामीणों ने आज यहां के GM कार्यालय पर कब्ज़ा कर लिया और यहीं पर बैठ गए। ग्रामीणों ने भवन के अंदर ही पंगत लगाकर भोजन किया और मांगों के निराकरण तक यहां बैठने की चेतावनी दे दी है।

800 दिनों से चल रहा है आंदोलन

दरअसल SECL प्रबंधन द्वारा बरसों पहले ग्रामीणों की जमीन कोयला खदान के लिए अधिग्रहित की गई है। इसके एवज में मुआवजा, बसाहट और रोजगार दिए जाने का प्रावधान है। जिला प्रशासन की मध्यस्थता से बड़ी संख्या में पात्र भूविस्थापितों को नौकरी तो दी गई मगर ऐन-केन-प्रकारेण कई बेरोजगारों को अपात्र घोषित कर दिया गया। ऐसे लोगों को नौकरी दिलाने के लिए ग्रामीण बरसों से संघर्ष कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ किसान सभा और भू विस्थापित रोजगार एकता संघ के बैनर तले ग्रामीण SECL कुसमुंडा कार्यालय के परिसर में बीते 800 दिनों से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, मगर इनकी मांगों का अब तक निराकरण नहीं हो सका है।

‘रोजगार मिलने तक चलेगा कब्जा आंदोलन’

छत्तीसगढ किसान सभा और भू विस्थापित रोजगार एकता संघ के नेतृत्व में लंबे समय से चल रहे आंदोलन के बीच SECL प्रबंधन ने कई बार वार्ता की मगर कोई ठोस हल नहीं निकल सका। आज भी वार्ता के लिए इनका प्रतिनिधिमंडल GM से चर्चा के लिए कार्यालय के अंदर गया। इनके बीच बातचीत हुई मगर निराकरण नहीं निकलने के बाद भूविस्थापितों ने कार्यालय के अंदर ही धरना दे दिया।

इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे छत्तीसगढ़ किसान सभा के जिला सचिव प्रशांत झा ने बताया कि प्रत्येक खातेदार को रोजगार मिलने तक कुसमुंडा जीएम कार्यालय में भू विस्थापितों का कब्जा आंदोलन शुरू हो गया है। इस बार भू विस्थापित आर-पार की लड़ाई की तैयारी कर के आए हैं। प्रत्येक खातेदार को रोजगार मिलने तक भू विस्थापित कार्यालय के अंदर बैठे रहेंगे। आज जीएम कार्यालय के अंदर गलियारे में ही भू विस्थापितों ने पंगत में बैठकर भोजन भी किया।

समझाइश का चल रहा है प्रयास

भू विस्थापितो के इस तरह के प्रदर्शन से SECL प्रबंधन के बीच हड़कंप मच गया है। कार्यालय के अंदर जमीन पर बैठे आंदोलनकारियों को समझाने का प्रयास अधिकारियों और पुलिस द्वारा किया जा रहा है, लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हैं। प्रशांत झा और अन्य पदाधिकारियों का कहना है कि SECL और प्रशासन के साथ अनेक त्रिपक्षीय वार्ता और आश्वासन के बावजूद अब तक बड़ी संख्या में पात्र भूविस्थापितों को नौकरी नहीं दी गई है। इससे नाराज ग्रामीण अब मामले के निराकरण के बाद ही आंदोलन खत्म करने के मूड में हैं। बहरहाल देखना है कि बरसों से चल रहे इनके संघर्ष का क्या परिणाम सामने आता है।

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